“रिश्ते से अपेक्षा रखना स्वार्थ नहीं है”
रिश्ते से अपेक्षा रखना स्वार्थ नहीं है (एक सामाजिक, भावनात्मक और मानवीय दृष्टिकोण) भूमिका हमारे जीवन की सबसे सुंदर और आवश्यक संरचनाओं में से एक है – रिश्ता । यह एक ऐसी डोर होती है, जो दो लोगों को आपसी विश्वास, प्रेम, सम्मान और समझदारी से जोड़ती है। माता-पिता और संतान, पति-पत्नी, भाई-बहन, मित्र या कोई भी आत्मीय संबंध – सब रिश्ते ही तो हैं। लेकिन जब कोई इन रिश्तों से कुछ अपेक्षा करता है, तो समाज के कुछ वर्ग इसे “स्वार्थ” की दृष्टि से देखता है। प्रश्न यह है कि – क्या किसी से अपनेपन, आदर, समझ, या सहयोग की अपेक्षा करना वास्तव में स्वार्थ है? उत्तर है – बिलकुल नहीं। बल्कि यह अपेक्षा ही तो उस रिश्ते को जीवंत बनाए रखती है। अपेक्षा क्या है? अपेक्षा एक स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है। जब हम किसी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि हम उससे कुछ सकारात्मक व्यवहार की उम्मीद रखें। जैसे कि – माँ-बाप अपने बच्चों से समय पर बात करने और आदर की अपेक्षा करते हैं। पति या पत्नी एक-दूसरे से प्रेम और समझ की अपेक्षा करते हैं। एक मित्र कठिन समय में अपने मित्र से सहारे की...