"अगर शुरू किया है, तो खत्म भी मुझे ही करना है"




जीवन में सफलता की राह आसान नहीं होती। हर सफर की शुरुआत एक सोच से होती है—कभी एक विचार से, कभी एक सपने से, और कभी एक दर्द से। लेकिन जो भी हो, अगर आपने किसी काम की शुरुआत की है, तो उसे पूरा करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही बनती है। यह केवल शब्द नहीं है, यह एक सोच है, एक जीवन दर्शन है—“अगर शुरू किया है, तो खत्म भी मुझे ही करना है।”

जब हम कोई काम शुरू करते हैं, तो हमारे भीतर एक ऊर्जा होती है, एक जोश होता है। शुरुआत करना आसान होता है, लेकिन मुश्किल तब आती है जब राह में चुनौतियाँ आती हैं। तभी यह विचार हमें खड़ा करता है—कि जिस काम को मैंने शुरू किया है, चाहे जैसे भी हालात हों, उसे मुकाम तक पहुंचाना मेरा कर्तव्य है।

संघर्ष की कसौटी पर खरा उतरना

हर सफर में उतार-चढ़ाव आते हैं। कभी लोग साथ छोड़ते हैं, कभी हालात धोखा देते हैं, तो कभी खुद पर भी विश्वास डगमगाने लगता है। लेकिन जिस इंसान ने खुद से वादा किया होता है कि "मैंने यह शुरू किया है और अब इसका अंत भी मैं ही करूंगा," वह कभी रुकता नहीं। उसके लिए मुश्किलें रास्ता रोक नहीं पातीं, बल्कि रास्ता बन जाती हैं।

ऐसे लोग अपने डर को भी साधन बना लेते हैं, अपने आंसुओं को भी हथियार बना लेते हैं, और अपनी थकान को भी प्रेरणा बना लेते हैं। क्योंकि उन्हें पता होता है कि अधूरा छोड़ देना उनकी फितरत में नहीं है।

जिम्मेदारी से भागना आसान, निभाना मुश्किल

आज की दुनिया में अधूरे कामों की भरमार है। बहुत सारे लोग शुरुआत तो करते हैं—बिजनेस, पढ़ाई, रिश्ते, योजनाएं—लेकिन बीच में ही हार मान लेते हैं। वजह? या तो परिस्थितियाँ बदल जाती हैं, या फिर उत्साह कम हो जाता है। लेकिन जो लोग खुद से, अपने मिशन से ईमानदार होते हैं, वे जिम्मेदारी उठाते हैं।

वे जानते हैं कि अगर मैंने शुरुआत की है, तो अब उसका बोझ भी मुझे ही उठाना है, उसका परिणाम भी मुझे ही भुगतना है, और उसका गौरव भी मुझे ही हासिल करना है।

मंज़िल उन्हीं को मिलती है, जो अंतिम पायदान तक जाते हैं

हर महान कहानी अधूरी नहीं होती। कुछ कहानियाँ इसलिए याद रखी जाती हैं क्योंकि उनके नायक ने हार नहीं मानी। उन्होंने हर मोड़ पर खुद को याद दिलाया—कि मैंने यह सपना देखा है, मैंने यह कदम उठाया है, और अब इसे मुकाम तक पहुँचाना मेरी ज़िम्मेदारी है।

चाहे वह एपीजे अब्दुल कलाम हों, महात्मा गांधी हों, या फिर किसी छोटे गांव से निकला कोई साधारण इंसान—इन सबकी कहानी में एक बात समान होती है—दृढ़ निश्चय और संकल्प।

धैर्य और अनुशासन: सफलता की नींव

शुरुआत करना जुनून का काम है, लेकिन अंत तक पहुंचना अनुशासन का काम है। धैर्य वह ताकत है जो आपको थकने नहीं देती, और अनुशासन वह रीढ़ है जो आपको डगमगाने नहीं देती। यह दोनों गुण उस व्यक्ति में होते हैं जो यह तय कर चुका है कि जो भी हो, मैं रुकूंगा नहीं।

जब आप दिन-ब-दिन, बिना परिणाम की चिंता किए, केवल अपने कार्य पर फोकस करते हैं, तो एक समय ऐसा आता है जब आपका ही काम आपकी पहचान बन जाता है। और तब दुनिया कहती है—“यह वो इंसान है जिसने शुरू किया और अंत तक गया।”

एक प्रेरणा और जिम्मेदारी

यह विचार सिर्फ व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं है। यह एक सामाजिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी है। अगर आपने किसी समाज की भलाई के लिए कदम बढ़ाया है, तो उसे अधूरा छोड़ना केवल खुद से नहीं, पूरे समाज से विश्वासघात होगा। अगर आपने किसी मिशन की बात की है—किसी संस्था, किसी आंदोलन, किसी कंपनी, किसी सपने की—तो अब उसे अधूरा नहीं छोड़ सकते।

क्योंकि लोग आपसे जुड़ते हैं, आपकी बातों से प्रेरित होते हैं। जब आप बीच में रुकते हैं, तो उनके सपनों को भी ठेस पहुँचती है। लेकिन जब आप डटे रहते हैं, तो न केवल खुद का, बल्कि हजारों लोगों का हौसला बन जाते हैं।

निष्कर्ष: पूर्णता ही पहचान बनती है

इसलिए, जब भी जीवन में किसी काम की शुरुआत करें—चाहे छोटा हो या बड़ा—तो पहले ही खुद से एक वादा करें:

“मैं इस सफर को अंत तक ले जाऊंगा।”
“मुश्किलें आएंगी, रास्ता लंबा होगा, लेकिन मैं पीछे नहीं हटूंगा।”
“क्योंकि अगर मैंने शुरू किया है, तो खत्म भी मुझे ही करना है।”

यही सोच आपको खास बनाती है, यही सोच आपको सफल बनाती है, और यही सोच आपको इतिहास में अमर कर सकती है।



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