संगति आपका भविष्य तय करती है



संगति का असर बहुत बड़ा होता है

– आज के छात्रों के जीवन पर बदलती संगति, सोशल मीडिया और पारिवारिक मूल्यों की पड़ती छाया

"किसके साथ बैठते हो, वही तय करता है कि तुम कहाँ तक जाओगे।"

जीवन की दिशा चुनने में संगति यानी साथ का असर जितना गहरा है, उतना शायद कोई और कारक नहीं। विशेषकर विद्यार्थियों के जीवन में संगति का प्रभाव वैसा ही होता है जैसे कोमल मिट्टी पर गिरी बूंदें — जो चाहें तो उसे सुंदर आकृति दे दें, और चाहें तो उसे गंदा भी कर दें।


रामचरितमानस से – संगति का दिव्य प्रभाव

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा:

"बिस्वासु भगति संततनु संगति, एहि सम न लाभु कोउ आन"
(भावार्थ: संतों की संगति और प्रभु की भक्ति से बड़ा कोई लाभ नहीं।)

रामचरितमानस में ही देखिए – भगवान श्रीराम ने बाल्यकाल से ही गुरु वशिष्ठ और फिर महर्षि विश्वामित्र जैसी दिव्य संगति में समय बिताया। यही कारण था कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम बन सके। वहीं कैकयी की संगति में मंथरा जैसी स्त्री आ गई, और उसका सोच ही विषाक्त हो गया, जिसने पूरे अयोध्या का संतुलन बिगाड़ दिया।

शिक्षा: एक गलत संगति व्यक्ति को महानता से गिराकर पतन की ओर ले जा सकती है।


श्रीमद्भगवद्गीता से – विचारों का युद्ध और अर्जुन की संगति

अर्जुन जब महाभारत युद्ध से पहले मोहग्रस्त हो गया और अपना कर्तव्य छोड़ने की बात करने लगा, तब भगवान श्रीकृष्ण की संगति और उपदेश ही थे, जिन्होंने उसे पुनः धर्म के पथ पर स्थिर किया।

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं: "संगात् संजायते कामः..."
(अध्याय 2, श्लोक 62)
जहां व्यक्ति बार-बार मन लगाता है, वहां आसक्ति पैदा होती है। गलत संगति से कामना, क्रोध और पतन तक की यात्रा शुरू होती है।

शिक्षा: संगति व्यक्ति के मन में संस्कार, सोच और निर्णय की दिशा तय करती है।


इतिहास से – चाणक्य और चंद्रगुप्त, गांधी और उनके विचार

  • चाणक्य की संगति में चंद्रगुप्त मौर्य ने मात्र 16 वर्ष की उम्र में साम्राज्य की नींव रख दी। वह एक सामान्य बालक था, लेकिन योग्य गुरु और सही संगति ने उसे महान सम्राट बना दिया।

  • महात्मा गांधी की संगति में युवाओं को सत्य, अहिंसा और आत्मबल की प्रेरणा मिली। वे स्वयं भी श्रीरामचरितमानस, भगवद्गीता और तुलसीकृत साहित्य को आत्मसात कर विचारों में दृढ़ बने।


आज की स्थिति – संगति की परिभाषा बदल गई है

अब छात्रों की संगति सिर्फ विद्यालय तक सीमित नहीं रही। सोशल मीडिया, इंफ्लुएंसर संस्कृति, और वर्चुअल फ्रेंडशिप उनकी सोच और दिशा तय करने लगी है।

  • जो छात्र धार्मिक, प्रेरणादायक और शैक्षणिक पेजों से जुड़े हैं, उनमें नेतृत्व और अनुशासन का विकास होता है।
  • वहीं जो फैशन, दिखावे, अश्लीलता और हिंसा वाले कंटेंट से जुड़े हैं, वे धीरे-धीरे भीतर से खोखले हो जाते हैं।

पारिवारिक संवाद की टूटती डोर

कभी जो दादी-नानी की कहानियाँ हमारी नीति, धर्म और व्यवहार के प्रथम पाठशाला थीं, आज उनका स्थान मोबाइल ने ले लिया है। माँ-पिता की सीख "डिसकनेक्टेड" लगती है और “रील्स” ही आज की प्रेरणा बन गई है।

छात्र परिवार को बायपास कर बाहरी दिखावे की ओर मुड़ गए हैं। इससे संस्कारों की जड़ें कमजोर हो रही हैं, जो भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है।


परंपराओं से मुंह मोड़ना – आत्मिक संकट

हमारी संस्कृति में गुरु, वंदन, भक्ति, सेवा, और श्रवण परंपरा हमेशा से प्रमुख रही है। आज जब छात्र केवल "कूल" दिखने की होड़ में संस्कृति को पिछड़ा मान लेते हैं, तब वे स्वयं को अपनी ही पहचान से काट लेते हैं।

जो छात्र राम, कृष्ण, विवेकानंद, कलाम जैसे महान पुरुषों की जीवन-गाथा पढ़ने की जगह तुच्छ मनोरंजन में समय बर्बाद करते हैं, वे अंततः दिशाहीन होकर असफलता की ओर बढ़ते हैं।


समाधान – सही संगति, श्रेष्ठ जीवन

  1. महापुरुषों की संगति (पठन/वीडियो के माध्यम से)
    रोज 15-20 मिनट भगवद्गीता, रामचरितमानस या विवेकानंद के साहित्य का अध्ययन करें।

  2. परिवार के साथ समय बिताएं
    साथ बैठकर भोजन करें, पूजा में शामिल हों, और सप्ताह में एक दिन बिना मोबाइल के पारिवारिक संवाद करें।

  3. सोशल मीडिया का लक्ष्य निर्धारित करें
    केवल शैक्षणिक, प्रेरणादायक या धार्मिक कंटेंट देखें। समय सीमा तय करें।

  4. सच्चे मित्र चुनें
    जो दोस्त आपकी सोच, पढ़ाई और चरित्र को ऊपर उठाएं – वही संगति योग्य है।


निष्कर्ष – संगति आपका भविष्य तय करती है

भगवान श्रीराम, अर्जुन, चंद्रगुप्त या विवेकानंद – इन सबने महानता पाई क्योंकि उनकी संगति महान थी।
आज के छात्रों को यह समझना होगा कि वे क्या देख रहे हैं, किसे सुन रहे हैं और किनसे प्रभावित हो रहे हैं – यही उनका आने वाला जीवन बना या बिगाड़ सकता है।

"संगति केवल साथ नहीं, वह आपके विचारों की गहराई और जीवन की ऊँचाई तय करती है।"



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