जीवन तप है, संघर्ष है, सेवा है।
"अगर सूरज बनना है तो उसकी तरह जलना होगा,
अगर नदी जैसा सम्मान चाहिए, तो पर्वत छोड़कर बहना होगा..."
कभी अकेले बैठ कर सोचा है कि हम इस जीवन से क्या चाहते हैं?
नाम? पैसा? इज़्ज़त? प्यार?
सच कहें तो हम सब कुछ चाहते हैं...
लेकिन ये सब तब मिलता है,
जब हम देने के लिए तैयार होते हैं—
अपना वक्त, अपनी मेहनत, अपने जज़्बात, और कभी-कभी खुद को भी।
सूरज, जो हर सुबह निकलता है—
ना थकता है, ना रुकता है, ना शिकायत करता है।
उसे मालूम है कि उसकी तपिश किसी को चुभेगी भी,
लेकिन फिर भी वो जलता है—
क्योंकि उसकी रोशनी से ही किसी के घर की रोटी पकती है,
किसी बच्चे की किताबें खुलती हैं,
किसी माँ का चेहरा मुस्कराता है।
क्या हममें है वो ताक़त?
क्या हममें है वो साहस,
कि बिना किसी ताली की आस के,
हर दिन सूरज की तरह तपें?
और वो नदी...
जो अपनी पहचान खोकर भी पहचान बनाती है।
जो पर्वत से गिरती है,
चट्टानों से टकराती है,
कभी बाढ़ बन जाती है,
कभी सूखे में आख़िरी उम्मीद।
वो बहती है, हर हाल में, हर दिशा में—
ना किसी की नज़रों की मोहताज,
ना किसी प्रशंसा की भूखी।
क्यों?
क्योंकि वो जानती है कि बहना उसका धर्म है,
देना उसका कर्म है।
और यही धर्म और कर्म
उसे वह सम्मान दिलाता है,
जिसके आगे राजा भी सिर झुकाते हैं।
हम क्या कर रहे हैं अपने जीवन में?
क्या हम भी कोई "सूरज" हैं किसी के लिए?
या "नदी" हैं जो किसी के जीवन में बह रही है?
या हम बस जी रहे हैं—
शिकायतों के साथ, थकान के साथ,
"क्यों मुझे नहीं मिला", "मेरे साथ ही क्यों हुआ" जैसे सवालों के साथ?
कभी खुद से पूछिए...
क्या आपने बिना बदले की उम्मीद के कुछ किया है?
क्या किसी की मदद की है जब आपके पास खुद कुछ नहीं था?
क्या खुद को दर्द में डालकर किसी और की खुशी के लिए जिया है?
अगर हाँ...
तो आप सूरज हैं—जो रोशनी देता है।
अगर आपने रास्ता बनाया है जहां कोई रास्ता नहीं था,
तो आप नदी हैं—जो जीवन का प्रवाह बनाती है।
जीवन तप है, संघर्ष है, सेवा है।
और यही तीन चीज़ें
हमें उस ऊंचाई पर ले जाती हैं
जहां से हम न सिर्फ़ दुनिया को देखते हैं,
बल्कि दुनिया हमें देखती है।
याद रखिए...
हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती,
लेकिन हर तपता हुआ इंसान एक दिन ज़रूर चमकता है।
हर बहती चीज़ नदी नहीं होती,
लेकिन जो बहना जान गया,
उसका नाम इतिहास में बहता रहता है।
तो अगर सच में आदर, प्रेम और पहचान चाहिए—
तो सूरज की तरह जलना होगा
और नदी की तरह बहना होगा।
क्योंकि जो खुद को मिटाता है,
वो ही दुनिया को रोशन करता है।
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