“जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम” , यह गीत जीवन के संघर्ष, उत्साह और सतत प्रयास का बहुत सुंदर संदेश देती हैं।



“जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम।”

सिर्फ एक गीत की पंक्तियाँ नहीं हैं। ये शब्द हैं, जिनमें पूरी जिंदगी का सार छुपा है। ये जीवन की उस अनंत यात्रा का संकेत हैं, जहाँ थकान है, आँसू हैं, ठहराव है, पर फिर भी रुकना मना है। क्योंकि जीना है तो चलना ही पड़ेगा।

जब हम छोटे होते हैं, चलना सीखते हैं। गिरते हैं, चोट लगती है, फिर भी माँ कहती है — “उठो, फिर से चलो।” यही जीवन है। हर बार गिरो, लेकिन हर बार फिर से चलने की हिम्मत जुटाओ। किशोर कुमार की आवाज़ में ये गीत हमारे भीतर वो ऊर्जा भर देता है, जो कठिन से कठिन राहों को भी आसान बना देती है।

बचपन — चलना सीखने की पहली कोशिश

बचपन में हमारी ज़िन्दगी सिर्फ खिलौनों, स्कूल, खेल और माँ की कहानियों में सिमटी होती है। लेकिन उसी समय हम चलना सीखते हैं। पहली बार कदम बढ़ाते हैं तो लड़खड़ाते हैं। अक्सर गिरते हैं। मगर उस मासूम मुस्कान के साथ फिर खड़े होते हैं। हम सबने देखा होगा — बच्चे जब गिरते हैं तो रोते तो हैं, लेकिन फिर भी उनकी कोशिश रहती है — “फिर से चलूँ।”

यही जज़्बा असल में ‘जीवन चलने का नाम’ का पहला पाठ होता है। उस वक्त हमें पता नहीं होता कि जिंदगी में कितनी बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ आएंगी। पर ये आदत — गिरकर फिर उठने की — पूरी ज़िन्दगी हमारे काम आती है।

जवानी — सपने, संघर्ष और चलने की रफ्तार

जवानी में कदम तेज़ हो जाते हैं। सपने बड़े हो जाते हैं। दिल में एक जोश रहता है — कुछ कर दिखाने का। कॉलेज, करियर, दोस्त, प्रेम, महत्वाकांक्षाएँ — सब कुछ एक ही समय पर ज़िन्दगी में दस्तक देता है।

पर सच ये है कि यह दौर भी आसान नहीं होता। किसी का प्यार अधूरा रह जाता है। किसी की नौकरी नहीं लगती। कोई परीक्षा में असफल हो जाता है। कोई परिवार की जिम्मेदारियों में उलझ जाता है।

यही वो वक्त है जब ‘चलते रहो सुबह-शाम’ की असली अहमियत समझ आती है।

माना कि राह में कांटे हैं, पर कांटों के डर से कोई चलना नहीं छोड़ता। अगर ठहर जाओगे तो पीछे ही रह जाओगे। जमाना आगे निकल जाएगा।

मुझे याद है, कॉलेज के दिनों में मेरे एक दोस्त ने सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू की। तीन बार असफल हुआ। लोग हँसने लगे। रिश्तेदार ताने देने लगे। पर उसने हिम्मत नहीं हारी। चौथी बार में उसने परीक्षा पास की और आज एक अच्छे पद पर है। वही कहता है — “गिरता वही है जो चलता है। और वही जीतता है जो फिर से चल पड़ता है।”

मध्य उम्र — जिम्मेदारियों के बोझ में भी चलना ज़रूरी

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, ज़िम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं। नौकरी, परिवार, बच्चों की पढ़ाई, माता-पिता की सेहत, आर्थिक दबाव — सब एक साथ कंधों पर आ जाता है। बहुत बार लगता है — बस, अब थक गया हूँ।

पर यही वक्त होता है जब ‘चलते रहो सुबह-शाम’ की बात और भी गहरा अर्थ ले लेती है।

यही वो समय है जब खुद के सपने कहीं पीछे छूटने लगते हैं। लेकिन यहीं पर रुकना सबसे खतरनाक है। अगर रुक गए, तो निराशा, अवसाद, हताशा पकड़ लेती है।

मध्य उम्र में चलना सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक चलन भी होता है। ज़िन्दगी के इस मोड़ पर खुद को फिर से प्रेरित करना, खुद को पहचानना, और नये सपनों को पालना — यही असली ‘जीवन’ है।

बहुत लोग कहते हैं — “अब उम्र हो गई है, अब क्या करना?”
मगर असल में, उम्र का इससे कोई लेना-देना नहीं।

अमिताभ बच्चन ने अपने करियर की नई शुरुआत 60 साल के बाद की। रिटायरमेंट के बाद भी कई लोग नई नौकरी, नया बिज़नेस, नई कला शुरू करते हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने चलना नहीं छोड़ा।

बुजुर्गी — थकन के बावजूद उम्मीद की लौ

बुढ़ापा शरीर को थका देता है, पर आत्मा को नहीं। आँखें कमज़ोर हो सकती हैं, पर सपने नहीं।

मेरे दादा जी हमेशा कहते थे — “चलते रहो बेटा, चलते रहोगे तो थकोगे नहीं।”
मैंने देखा है, 80 साल की उम्र में भी वो सुबह उठकर 2 किलोमीटर टहलते थे। जब मैं पूछता — “दादा जी, थकते नहीं?”
तो वो मुस्कराकर कहते —
“थकता वही है जो रुक जाता है।”

बुजुर्गों के पास अनुभवों का खजाना होता है। और अगर वो चलते रहते हैं — चाहे थोड़ा ही सही — तो उनकी जिंदगी में एक अलगी ही चमक होती है। उनका हौसला देखकर लगता है, ‘जीवन चलने का नाम’ कोई पुरानी कहावत नहीं, बल्कि जीने की असली तरकीब है।

जीवन — एक यात्रा, कोई मंज़िल नहीं

हम अक्सर सोचते हैं — “एक दिन सब ठीक हो जाएगा, तब चैन से जी लेंगे।”

मगर सच ये है कि जिंदगी किसी मंज़िल का नाम नहीं है। यह तो सिर्फ एक यात्रा है।

अगर मंज़िल तक पहुँच भी जाओ, तो भी वहाँ ठहर नहीं सकते। फिर नयी मंज़िलें, नए रास्ते, नई चुनौतियाँ खड़ी हो जाती हैं।

यहाँ किशोर कुमार का गाना दिल को छू जाता है —

“जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम।”

यह पंक्ति हमें याद दिलाती है कि हमें चलते रहना है। कभी हार नहीं माननी है।

मुश्किलें आएँगी, पर रुकना नहीं

क्या रास्ते में अंधेरा नहीं आएगा? आएगा।
क्या लोग ताने नहीं मारेंगे? मारेंगे।
क्या हालात बुरे नहीं होंगे? ज़रूर होंगे।

मगर रुक गए, तो सब यहीं खत्म।

रामायण, महाभारत, कुरान, बाइबल — हर जगह एक ही संदेश मिलता है — संघर्ष से भागो मत। चलते रहो।

रामचन्द्र जी को देखिए — 14 साल का वनवास, राजगद्दी छिन गई, पत्नी का हरण हो गया, लेकिन वो चलते रहे।

भगवान कृष्ण को देखिए — जन्म से ही संघर्ष। पर जीवन के हर पल में उन्होंने आगे बढ़ते रहने का संदेश दिया।

बुद्ध को देखिए — महलों को छोड़कर जंगलों में निकल पड़े सत्य की खोज में।

सभी महापुरुषों की कहानी एक ही है — “चलते रहो।”

चलते रहना क्यों ज़रूरी है?

  • क्योंकि चलते रहने से ही नयी राहें खुलती हैं।
  • चलते रहने से डर खत्म होता है।
  • चलते रहने से आत्मविश्वास पैदा होता है।
  • चलते रहने से नई मंज़िलें मिलती हैं।
  • चलते रहने से जीवन में आनंद आता है।

अगर हम रुक जाएं, तो वही पुरानी बातें, वही दुख, वही ग़म हमें घेर लेते हैं। फिर जीवन बोझ बन जाता है।

इसलिए चलना ही जीवन है।

संगीत — एक साथी इस सफर में

किशोर कुमार का यह गीत सिर्फ गीत नहीं, एक साथी है। जब मन उदास हो, जब हार मानने का मन करे, यह गीत सुनो। आवाज़ में एक अनोखी ऊर्जा है। शब्दों में जादू है।

“जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम।”

हर शब्द भीतर एक आग जला देता है — “मैं हार नहीं मानूंगा। मैं फिर से चलूँगा।”

अपने लिए चलो, दूसरों के लिए भी

हमारी जिंदगी सिर्फ हमारी नहीं होती। हमारी चाल पर कई लोगों की ज़िन्दगी निर्भर होती है — परिवार, बच्चे, माता-पिता, दोस्त, समाज। अगर हम हार मान लेंगे, तो वो सब भी टूट जाएंगे।

इसलिए चलो — अपने लिए, अपनों के लिए, समाज के लिए।

कभी-कभी किसी मुस्कराहट के पीछे बहुत बड़ी लड़ाई छुपी होती है। किसी ने कहा है —

“अगर आप थक चुके हैं, तो आराम कर लो, लेकिन रुकना मत।”

चलना, पर समझदारी से

हाँ, चलते रहना ज़रूरी है, मगर आँखें बंद करके नहीं। राह देखो, मंज़िल देखो, हालात देखो। गलत रास्ते पर भागने से अच्छा है थोड़ा ठहरकर सही रास्ता चुनना।

चलना तब सार्थक होता है, जब हम सही दिशा में चलें।

जीवन का संदेश

आज अगर आपकी ज़िन्दगी में कोई मुश्किल है — नौकरी की, रिश्तों की, पैसे की, स्वास्थ्य की — तो बस इतना याद रखना —

“जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम।”

आपकी हार सिर्फ तब होती है, जब आप रुक जाते हैं। वरना हर हार में जीत का बीज छुपा होता है।

जिंदगी कोई फिल्म नहीं जहाँ सब कुछ एक गाने में हल हो जाए। पर हाँ, यह गीत हमें जीने की ताकत ज़रूर देता है।

चलते रहिए… क्योंकि चलना ही ज़िन्दगी है।



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