संकल्प, संस्कार और आध्यात्म की शक्ति

संकल्प, संस्कार और आध्यात्म की शक्ति: 

मनुष्य के जीवन में संकल्प का विशेष महत्व है। संकल्प की शक्ति से वह असंभव कार्यों को भी संभव बना सकता है। संकल्प व्यक्ति को प्रेरित करता है, उसे लक्ष्य की ओर अग्रसर करता है और उसे जीवन में सफलता दिलाने में सहायक बनता है।

हमारा मनुष्य जीवन कल्पवृक्ष के समान है। जिस प्रकार कल्पवृक्ष से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार यदि हमारे जीवन में दृढ़ संकल्प और उत्तम संस्कार हों, तो हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। अच्छे संकल्प के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी आवश्यक हैं, क्योंकि संस्कारों के अभाव में संकल्प भी निर्बल हो जाते हैं। जीवन में जब उत्तम संस्कार होते हैं, तो बुराइयों का प्रवेश नहीं होता। बच्चों और बड़ों में समान रूप से संस्कारों की स्थापना होनी चाहिए, और इसके लिए परिवार के बड़े-बुजुर्गों का अनुशासन आवश्यक है।

शक्ति के तीन प्रकार होते हैं—

1. आध्यात्मिक शक्ति
2. सत्ता शक्ति (Power)
3. काया शक्ति (शारीरिक बल)

इन तीनों में सर्वोपरि आध्यात्मिक शक्ति मानी जाती है। यह शक्ति तीन मुख्य स्तंभों पर आधारित होती है—

1. सद्भावना:

सद्भावना का अर्थ है हृदय की पूर्ण शुद्धता। जब व्यक्ति के भाव निर्मल होते हैं, तो उसके विचार भी शुद्ध होते हैं, और वह सदैव सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त रहता है। जीवन में सद्भावना का होना परम आवश्यक है, क्योंकि इससे समाज में प्रेम, शांति और सौहार्द बना रहता है।

2. नैतिकता:

जो व्यक्ति सदैव नीति और न्याय के मार्ग पर चलता है, उसका कभी भी नैतिक पतन नहीं होता। नैतिकता जीवन का मूल आधार है। नैतिक रूप से समृद्ध व्यक्ति न केवल स्वयं सशक्त बनता है, बल्कि समाज को भी सशक्त बनाता है।

3. नशा मुक्ति:

जिस देश के युवा नशे की गिरफ़्त में होते हैं, वह देश कभी भी आत्मनिर्भर नहीं बन सकता। नशा सामाजिक बुराई ही नहीं, बल्कि एक ऐसा जहर है, जो व्यक्ति के शरीर, मन और परिवार को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है। नशे के कारण व्यक्ति विकारों से घिर जाता है, जिससे उसका जीवन अशांत और दुखमय हो जाता है। इसलिए, नशा मुक्ति केवल व्यक्ति के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र के लिए आवश्यक है।

आत्मचिंतन: स्वयं को पहचानने का प्रयास

व्यक्ति को समय-समय पर आत्मचिंतन और आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। उसे स्वयं से यह प्रश्न अवश्य करना चाहिए—

मैं कौन हूँ?
मैं कहाँ से आया हूँ?
मैं इस जीवन में क्या करने आया हूँ?

जब व्यक्ति इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास करता है, तो उसे अपने जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझ में आता है। उसे यह बोध होता है कि जीवन केवल भौतिक सुख-सुविधाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका परम लक्ष्य आत्मिक उन्नति और समाज कल्याण भी है।

व्यक्ति को चाहिए कि वह स्वयं को धर्म से जोड़े, अपने परिवार और समाज में धर्म और अध्यात्म की चर्चा करे, क्योंकि धर्म ही वह शक्ति है जो व्यक्ति को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

"हम बदलेंगे तो देश बदलेगा"

व्यक्ति जब स्वयं को बदलता है, तो उसका परिवार बदलता है, समाज बदलता है, और अंततः पूरा देश बदल जाता है। इसलिए, यदि हम चाहते हैं कि हमारा देश उन्नति करे, तो हमें पहले स्वयं को उन्नत बनाना होगा। हमें संकल्प, संस्कार और सेवा की भावना को अपनाना होगा।

रिषड़ा में पधारे जैन मुनि ने अपने अनुयायियों को संबोधित करते हुए जो प्रेरणादायक ज्ञान का सोपान प्रस्तुत किया, वह केवल एक धार्मिक उपदेश नहीं, बल्कि जीवन का सार है। यदि हम इस मार्ग पर चलें, तो हमारा जीवन शांतिमय, सुखमय और अर्थपूर्ण बन सकता है।

प्रेरणादायक विचारों के साथ, एक जागरूक समाज की ओर।

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