मौन और मितभाषिता: सफल व्यक्तित्व का रहस्य
मौन और मितभाषिता: सफल व्यक्तित्व का रहस्य
प्रिय साथियों,
आज हम एक ऐसे गुण के बारे में चर्चा करेंगे जो हमारे व्यक्तित्व को निखार सकता है, हमें सम्मान दिला सकता है, और हमारी सफलता की नींव रख सकता है। यह गुण है – मौन और मितभाषिता।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है –
"मौनं सर्वार्थसाधनम्"
अर्थात् मौन हर लक्ष्य को प्राप्त करने का माध्यम है।
क्या आपने कभी सोचा है कि महान लोग कम बोलते हैं, लेकिन जब बोलते हैं तो दुनिया उन्हें सुनती है?
महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, एपीजे अब्दुल कलाम – इन महान व्यक्तित्वों की वाणी में गहराई थी, क्योंकि वे सोच-समझकर बोलते थे।
अधिक बोलना क्यों नुकसानदायक है?
- जब हम अधिक बोलते हैं, तो अक्सर फालतू की बातें कह जाते हैं।
- ज्यादा बोलने से हमारी बातों का असर कम हो जाता है।
- हर जगह अपनी राय देना हमें हल्का बना सकता है।
- अनावश्यक बोलने से विवाद बढ़ सकते हैं और रिश्ते बिगड़ सकते हैं।
मौन की शक्ति क्या है?
भगवद गीता (१७.१५) में श्रीकृष्ण कहते हैं:
"अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।"
अर्थात् जो वाणी सत्य, प्रिय और हितकारी हो, वही श्रेष्ठ होती है।
महर्षि पतंजलि ने भी कहा – "मौन से आत्मशक्ति बढ़ती है।"
जब हम मौन रहते हैं, तब हम अधिक सुनते हैं, अधिक सीखते हैं और अधिक प्रभावशाली बनते हैं।
मौन और मितभाषिता को कैसे अपनाएँ?
- बोलने से पहले सोचें – क्या यह आवश्यक, सत्य और हितकारी है?
- मौन का अभ्यास करें – दिन में कुछ समय "मौन व्रत" रखें।
- अच्छा श्रोता बनें – महान व्यक्ति अधिक सुनते हैं, कम बोलते हैं।
- शब्दों की गुणवत्ता बढ़ाएँ – अनावश्यक बोलने के बजाय सोच-समझकर बोलें।
निष्कर्ष
यदि आप अपने जीवन में बड़ा परिवर्तन लाना चाहते हैं, तो अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें। मितभाषिता अपनाएँ, मौन को अपनी ताकत बनाएँ। जब आपकी हर बात सोच-समझकर और प्रभावशाली होगी, तो दुनिया आपको सुनेगी, मानेगी और सम्मान देगी।
तो आइए, आज से एक संकल्प लें – "मैं केवल वही बोलूँगा, जो आवश्यक, सत्य और हितकारी हो।"
यही एक सशक्त और सफल व्यक्तित्व की पहचान है!
धन्यवाद!
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