कम चीनी, कम तेल – ज़्यादा जीवन: बदलती आदतों से बदलेगा भारत का स्वास्थ्य
✍️ राकेश मिश्रा “थोड़ा मीठा हो जाए?” या “कुछ तला-भुना हो जाए?” — ये सिर्फ वाक्य नहीं, बल्कि हमारे दिलों की आवाज़ हैं। हम भारतीयों की ज़िंदगी में मिठाइयाँ और तली-भुनी चीज़ें उतनी ही ज़रूरी हैं जितनी त्यौहारों की रौनक या घर की महक। लेकिन अब एक बड़ा सवाल हमारे सामने खड़ा है – क्या ये स्वाद हमें बीमारियों की तरफ तो नहीं ले जा रहा? भारत में बदलती तस्वीर: स्वाद की क़ीमत भारत तेजी से बदल रहा है। जहाँ कभी संक्रामक बीमारियाँ (Infectious Diseases) चिंता का विषय थीं, आज हम जीवनशैली जनित रोगों (Lifestyle Diseases) के शिकंजे में फँसते जा रहे हैं। सोचिए – हर तीसरा भारतीय या तो मोटापे का शिकार है या उसका शिकार बनने की कगार पर है। भारत में डायबिटीज़ के मरीजों की संख्या 10 करोड़ के पार जाने वाली है। हर साल 25 लाख से ज़्यादा लोग दिल की बीमारियों से अपनी जान गंवाते हैं। ये आँकड़े डराते हैं। और इनके पीछे एक बड़ा कारण है – हमारी प्लेट में छुपी चीनी और तेल की भरमार। चीनी और तेल के जाल में फँसी ज़िंदगी मोटापा – खामोश खतरा शहरों में रहने वाला हर दूसरा-तीसरा इंसान मोटापा झेल रहा है। वजह? ज...